Posted inGhazals Gulzar poetry जब भी आँखों में अश्क भर आए जब भी आँखों में अश्क भर आए लोग कुछ डूबते नज़र आए अपना मेहवर बदल चुकी थी ज़मीं हम ख़ला से जो लौट कर आए चाँद जितने भी गुम हुए… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए कुछ भँवर डूब गए पानी में चकराते हुए हम ने तो रात को दाँतों से पकड़ कर रक्खा छीना-झपटी में… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है ज़िंदगी एक नज़्म लगती है बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा और तंहाई बज़्म लगती है अपने साए पे पाँव रखता हूँ छाँव छालों को नर्म… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं जो आफ़्ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं हमारा दिल है उसी की शुआएँ भेजी… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का एक दरवाज़ा सा खुलता है कुतुब-ख़ाने का एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry शाम से आज साँस भारी है शाम से आज साँस भारी है बे-क़रारी सी बे-क़रारी है आप के बा'द हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है रात को दे दो चाँदनी की रिदा… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry एक पर्वाज़ दिखाई दी है एक पर्वाज़ दिखाई दी है तेरी आवाज़ सुनाई दी है सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने सारी बातों की सफ़ाई दी है फिर वहीं लौट के जाना होगा यार… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry बीते रिश्ते तलाश करती है बीते रिश्ते तलाश करती है ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है जब गुज़रती है उस गली से सबा ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार पीले… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसाँ उतारता है कोई दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई आइना देख कर तसल्ली हुई हम को… Posted by Banaras Trip January 27, 2025
Posted inGhazals Gulzar poetry वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था हवाओं का रुख़ दिखा रहा था बताऊँ कैसे वो बहता दरिया जब आ रहा था तो जा रहा था कुछ और भी हो… Posted by Banaras Trip January 27, 2025