Ghar Nahi Ja Paaye Na Iss Bar Bhi By Zakir khan

Ghar Nahi Ja Paaye Na Iss Bar Bhi By Zakir Khan घर नहीं जा पाए ना इस बार भी By Zakir khan बस का इंतज़ार  करते हुए ,मेट्रो में खड़े-खड़े रिक्शा…

गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से

गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से आसमाँ भर गया है चीलों से सूली चढ़ने लगी है ख़ामोशी लोग आए हैं सुन के मीलों से कान में ऐसे उतरी सरगोशी बर्फ़ फिसली…

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं शाम से तेज़ हवा चलने के आसार से हैं नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ और जो पुल…

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैं बस एक वहशत-ए-मंज़िल है और कुछ भी नहीं कि चंद सीढ़ियाँ चढ़ते उतरते रहते हैं…

ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें

ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें शम्अ' जलती है तो लाज़िम है शुआएँ निकलें वक़्त की ज़र्ब से कट जाते हैं सब के सीने चाँद का छलका उतर…

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता न रौशनी कोई आती मिरे तआ'क़ुब में जो अपने-आप को मैं ने बुझा दिया होता ये…

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर सैली सी ख़ामोशी में आवाज़ सुनी फ़रमाइश पर फ़ासले हैं भी और नहीं भी नापा तौला कुछ भी नहीं लोग…

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की क्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात जुदाई की नींद में कोई अपने-आप से बातें करता रहता है काल-कुएँ में गूँजती है…