77 Views
गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से
आसमाँ भर गया है चीलों से
सूली चढ़ने लगी है ख़ामोशी
लोग आए हैं सुन के मीलों से
कान में ऐसे उतरी सरगोशी
बर्फ़ फिसली हो जैसे टीलों से
गूँज कर ऐसे लौटती है सदा
कोई पूछे हज़ारों मीलों से
प्यास भरती रही मिरे अंदर
आँख हटती नहीं थी झीलों से
लोग कंधे बदल बदल के चले
घाट पहुँचे बड़े वसीलों से