कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे

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Kahin To Gard Ude Ya Kahin Gubaar Dikhe Ghazals By Gulzar

कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे
कहीं से आता हुआ कोई शहसवार दिखे

ख़फ़ा थी शाख़ से शायद कि जब हवा गुज़री
ज़मीं पे गिरते हुए फूल बे-शुमार दिखे

रवाँ हैं फिर भी रुके हैं वहीं पे सदियों से
बड़े उदास लगे जब भी आबशार दिखे

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे

कोई तिलिस्मी सिफ़त थी जो इस हुजूम में वो
हुए जो आँख से ओझल तो बार बार दिखे

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