आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ

आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ पलकों के ढाँपने से भी रुकता नहीं धुआँ कितनी उँडेलीं आँखें प बुझता…

फूलों की तरह लब खोल कभी

फूलों की तरह लब खोल कभी ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी अल्फ़ाज़ परखता रहता है आवाज़ हमारी तोल कभी अनमोल नहीं लेकिन फिर भी पूछ तो मुफ़्त का मोल…

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त दो चार लम्हे बस में थे…

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है ज़िंदगी एक नज़्म लगती है बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा और तंहाई बज़्म लगती है अपने साए पे पाँव रखता हूँ छाँव छालों को नर्म…

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं जो आफ़्ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं हमारा दिल है उसी की शुआएँ भेजी…