कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है ज़िंदगी एक नज़्म लगती है बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा और तंहाई बज़्म लगती है अपने साए पे पाँव रखता हूँ छाँव छालों को नर्म…

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं जो आफ़्ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं हमारा दिल है उसी की शुआएँ भेजी…

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का एक दरवाज़ा सा खुलता है कुतुब-ख़ाने का एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने…

एक पर्वाज़ दिखाई दी है

एक पर्वाज़ दिखाई दी है तेरी आवाज़ सुनाई दी है सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने सारी बातों की सफ़ाई दी है फिर वहीं लौट के जाना होगा यार…

बीते रिश्ते तलाश करती है

बीते रिश्ते तलाश करती है ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है जब गुज़रती है उस गली से सबा ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार पीले…

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसाँ उतारता है कोई दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई आइना देख कर तसल्ली हुई हम को…