फूलों की तरह लब खोल कभी

101 Views

फूलों की तरह लब खोल कभी
ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी

अल्फ़ाज़ परखता रहता है
आवाज़ हमारी तोल कभी

अनमोल नहीं लेकिन फिर भी
पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी

खिड़की में कटी हैं सब रातें
कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी

ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डाँवा-डोल कभी

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *