ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का एक दरवाज़ा सा खुलता है कुतुब-ख़ाने का एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने…

एक पर्वाज़ दिखाई दी है

एक पर्वाज़ दिखाई दी है तेरी आवाज़ सुनाई दी है सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने सारी बातों की सफ़ाई दी है फिर वहीं लौट के जाना होगा यार…

बीते रिश्ते तलाश करती है

बीते रिश्ते तलाश करती है ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है जब गुज़रती है उस गली से सबा ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार पीले…

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसाँ उतारता है कोई दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई आइना देख कर तसल्ली हुई हम को…

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना…