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Shaam Se Aankh Me Nami Si Hai Ghazals By Gulzar
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि साँस आए
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
कौन पथरा गया है आँखों में
बर्फ़ पलकों पे क्यूँ जमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
आइए रास्ते अलग कर लें
ये ज़रूरत भी बाहमी सी है